बरसों पहले
काव्य साहित्य | कविता आशा बर्मन27 Oct 2018
बरसों पहले एक युवा हृदय में
एक ओर, कुछ कर गुज़रने की
अदम्भ चाह और उत्साह था
और दूसरी ओर,
भावनाओं के ज्वार के साथ साथ था,
आत्मविश्वास का नितांत अभाव तथा
अनजान भविष्य के प्रति आशंकायें।
ऐसा भी सुना था कि, कभी-कभी,
असंभव भी संभव हो जाया करते हैं
कि, मानव के स्पर्शमात्र से
पत्थर भी जीवन धारण करते हैं।
कि, पारस के स्पर्शमात्र से
लौह भी स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
सुना तो था, पर विश्वास नहीं था।
आज, बरसों के पश्चात्
ऐसा प्रतीत होता है कि
इस जगत में सब सम्भव है।
विगत के कुछ वर्षों के अनुभव ने
यह सिद्ध कर दिया है कि
मनुष्य के जीवन में जहाँ एक और विधि है,
वहीं दूजी ओर अमृत भी।
मानवीय सम्बन्धों की पारस मणि
स्पर्श हो, पत्थर भी सोना बन जाता है,
शूल भी फूल बन जाते हैं
तभी तो यह सम्भव हुआ कि
उस आशंकित दुर्बल हृदय व्यक्ति के
पग पग पर आते शूल
फूल में परिवiर्तत होते गये,
आत्मविश्वास, क्रमश: बढ़ता गया,
सारी आशंकायें निर्मूल सिद्ध हुईं
जिसके पारसमय स्पर्श से
यह परिवर्तन सम्भव हुआ,
उसी को समर्पित है -
ये सारे उद्गार - सुमन!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
स्मृति लेख
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
साहित्यिक आलेख
कार्यक्रम रिपोर्ट
कविता - हाइकु
गीत-नवगीत
व्यक्ति चित्र
बच्चों के मुख से
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं