विराग
काव्य साहित्य | कविता आशा बर्मन1 Oct 2019
मत विराग की बात करो, मत कहो कि जग निस्सार है।
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
प्रातः की अरुणिम आभा, आशा सन्देश सुनाती है ,
निज उर्जा और ज्योति से, सबमें नवशक्ति जगाती है।
ताराओं से जगमग हो, रजनी का रूप अपार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
यथासमय पर ऋतुएँ अपना रूप बदल कर आती हैं,
हर मौसम फल-फूल सुहाने सबको भेंट चढ़ाती हैं।
नित नूतन सौंदर्य प्रकृति में नित ही नई बहार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
शीष उठाये पर्वत कितने विस्तृत और महान हैं,
सरिताओं की छल-छल ध्वनि मानों करती सहगान है।
झर-झर करता निर्झर मानो पायल की झंकार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
माँ के आँचल की छाया में हँसता रहता है बचपन ,
गीत ख़ुशी के गाया करता सपनों में खोया यौवन।
मादकता-आतुरता से पूरित प्रिय की पुकार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
उर के तारों को झंकृत कर दें ऐसे गीत विरल, पर हैं,
सुख-दुख में जो काम आयें ऐसे मीत विरल, पर हैं।
ऐसे ही नातों के बल, धरती सहती सब भार है,
जीवन कितना सुन्दर है, मुझको जीवन से प्यार है॥
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