मौन बहुत है
काव्य साहित्य | कविता आशा बर्मन15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो।
माना कि तुम व्यस्त बहुत हो,
जीवन द्रुत है, त्रस्त बहुत हो।
अन्तर्मन की परतों को निज
अब तो धीरे-धीरे खोलो।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो।
दूर कहीं कोई चिड़िया चहकी,
पास कहीं पर जूही महकी,
मधुर-मादक परिवेश है छाया.
वाणी का इसमें रस घोलो।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो।
पहले तुम थे बहुत चहकते,
यूँ ही कुछ भी कहते रहते,
इस गम्भीर मुखौटे को तज,
क्यूँ न पहले जैसे हो लो।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो।
जो अन्तर में, मुझे बताओ,
कह सब-कुछ हल्के हो जाओ।
अपने मन के मनकों को
प्रेम पगे तारों में पो लो।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो।
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