आज
काव्य साहित्य | कविता आशा बर्मन1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
सुबह की रजत किरणों में,
आज का अनुभव है मेरा,
अन्य दिनों से सर्वथा भिन्न
यह है नए दिन का सवेरा।
नवजात शिशु सा कोमल,
नयी संभावनाओं से भरपूर,
अतीत की कटुता से दूर,
नव कल्पनाओं से परिपूर।
इस आज को स्वयं भी जियो,
दूसरों को भी जीने दो,
मेरे हिस्से का अमृत,
मुझे ही पीने दो।
अपनी दृष्टि से सबको मत आँको,
सद्भावना से देखो सबको,
अपना प्राप्य मुझे मत दो
पर मेरा भी तो मुझसे न लो।
अपने अहं को बचाने के लिए,
दूसरों को नीचे मत दिखाओ।
उनमें जो रत्न हैं छिपे,
उन्हें बाहर ला जगमगाओ।
विगत की कालिमा की छाया
आज पर न पड़ने न दो,
वर्तमान में समाहित है जो
सौरभ, उसे ही बिखरने दो।
देखो सुन्दर आकाश में,
न कल से बादल छाये हैं।
मंदगति पवन से, सुन्दर
फूल भी खिलखिलाये हैं।
अतः आज को समझो,
आज से प्यार करो
अपने जीवन के सपनों को
अब तुम साकार करो।
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