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कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. उषा त्यागी8 Feb 2017
फेसबुक पर, रोज़ाना नये अंदाज़ में गुडमार्निंग करती हुई कलाकृति के चेहरे की मुस्कान देख, स्वर्णलता ने मुस्कान का सच जानने का प्रयास किया। उसने देखा कि... मुँह खुला है सफेद दाँत मोती से चमक रहे हैं लेकिन मुस्कान खिसियायी खड़ी है, काजल लगी बड़ी-बड़ी आँखों के पीछे शायद कुछ छिपा है, माथे पर, झूमते कटे बालों में से चिन्ता की लकीरें झाँक रही हैं, सिल्क की महँगी साड़ी पहने कुर्सी पर बैठने की मुद्रा और आदेश देती तर्जनी से लगता है कि, कोई बड़ी अधिकारी है। उत्सुकतावश अन्य पोस्ट देखी और पढ़ी तो पता लगा कि बड़ी अधिकारी ही है। उनसे चैट करने की जिज्ञासा हुई...
"हैलो मैम..।"
"हाय..!"
"फाइन..!"
"आपकी सभी गुडमार्निंग पोस्ट लाइक करती हूँ.. देखिएगा...स्वर्णलता नाम मिलेगा...।"
"हाँ देखा है..॥"
"मैम.. इतने सारे लाइक पर तो फेसबुक आपको पेमेंट करती होगी?"
"हाँ बड़ी रक़म मिलती है और फेसबुक पर नम्बर वन "फेस" का अवार्ड भी मिला है..!"
"सही पकड़ा मैम आपने...बड़ी अधिकारी..बड़ी सैलरी..बड़ी कमाई..बहुत सारे फेसबुक मित्र..बहुत बड़ा फेसबुक पेमेंट..!"
"हाँ.."
"मैम..क्लोज़ फैमिली फ्रेंड्स..पति-पुत्र-पुत्री..भी होंगे..?"
कोई उत्तर नहीं मिला। काफी देर बाद चैट स्टार्ट हुई...
"स्वर्णलता क्या आप भी जॉब करती हैं?..."
"जी मैम.. आपके जैसी ही पदाधिकारी हूँ.. लेकिन घर में अधिकारी पति की.. अधिकारी पत्नी मात्र पत्नी हूँ.. और पुरुषप्रधान समाज में पत्नी की क्या दशा और क्या दिशा होती है.. इसी को मैं, आपके चेहरे की मुस्कान में ढूँढ रही थी.. फ़र्क इतना है कि आप गुडमार्निंग पोस्ट से क्षणिक.. दशा और दिशा के पर्दे से बाहर झाँक लेती हैं..और मैं अपने अंदर ही अपनी दशा और दिशा तलाशती रहती हूँ...!"
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