विभा रानी श्रीवास्तव त्रिवेणी - 1
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक विभा रानी श्रीवास्तव13 Oct 2014
1
चातक-चकोर को मदमस्त होते भी सुना है !
ज्वार-भाटे को उसे देख उफनते भी देखा है !
= यूँ ही नहीं होता माशूकों को चाँद होने का गुमाँ !!
2
रब एक पलड़े पर ढेर सारे ग़म रख देता है !
दूसरे पलड़े पर छोटी सी ख़ुशी रख देता है !
= महिमा तुलसी के पत्ते के समान हुई !!
3
टोकने वाले बहुत मिले राहों के गलियारों में !
जिन्हें गुमान था कि वही सयाने हैं टोली में !
= कामयाबी पर होड़ में खड़े दे रहे बधाई मुझे !!
4
नफ़रत सुलगाती हैं ख़ौफ़ ए मंज़र
उल्फ़त मोड देती है नोक ए खंजर
= क्यूँ बुनता है ताने बाने साज़िशों के हरदम
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं