वाइरस की ललकार
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता विवेक कौल15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
(‘दिनकर’ जी से क्षमा प्रार्थी)
वायरस कुपित होकर बोला–
ज़ंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ मानव! बाँध मुझे।
जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
रोने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
स्थगित करता हूँ मानव जीवन।
बाँधने मुझे तो आया है
वैक्सीन बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तू बाँध अनंत गगन
प्रकृति को नकार ना सकता है
तू मुझ मार कब सकता है।
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