ज़िन्दगी एक छोटा सा लक्ष्य
कथा साहित्य | लघुकथा अनुज गुप्ता21 Feb 2019
आज मेरा ऑफ़िस में पहला दिन था, कालेज की मस्ती से ऑफ़िस की ज़िम्मेदारियों में आ गया पलक झपकते ही। छोटा सा लक्ष्य बनाया था सरकारी नौकरी पाने का; वह भी अब पूरा हो गया है, बस अब मस्ती से पूरी ज़िन्दगी कट जायेगी। अब सिर्फ़ अपने छोटे से परिवार के साथ सुकून भरे पल जिसमें पापा, माँ और छोटी बहन है और शायद कुछ दिन बाद पत्नी भी आ जायेगी।
ऑफ़िस मे काफ़ी भागदौड़ और चहल-पहल थी। चर्चा और क़िस्सों के दौर चल रहे थे, मैं भी इन चर्चाओं में शामिल हो गया या ये कहिये की नया होने से चर्चाओं का विषय भी बन गया। अनुभवी लोग अपने पहले दिन और नौकरी के क़िस्से सुना रहे थे और मेरे भी भविष्य के बारे में मुझे बता रहे थे।
मैं भी उन की बातों को ध्यान से सुन रहा था तभी किसी ने सवाल किया, "अब आगे क्या सोचा है?"
मेरा जवाब मेरी सोच के मुताबिक़ निकला और कहा, "बस अब आराम से पूरी ज़िन्दगी यही नौकरी करेंगे और क्या?"
कुछ लोग जो अनुभवी व क़रीब 30 साल की नौकरी कर चुके थे उन्होंने एक अलग अंदाज़ से मुझे देखा कि मैंने कुछ ग़लत कह दिया हो। उनमें से एक व्यक्ति मुस्कुराते हुए बोले, "बेटा आप अभी बहुत जवान हो; बहुत कुछ कर सकते हो; अभी आराम की बात मत सोचो। अब पदोन्नती ले के जल्दी तरक्क़ी के बारे में सोचो।"
बातों के दौर चलते रहे साथ में मेरे दिमाग़ के तार भी हिलते रहे। घड़ी में 5 बजे थे ऑफ़िस के बन्द होने का समय हो चुका था।
मै ऑफ़िस के बाहर आ गया गाड़ी स्टार्ट की ओर चल दिया घर की ओर... एक नये छोटे से लक्ष्य के साथ कि अब पदोन्नती लेनी है। पहले छोटे से लक्ष्य को पूरा हुए अभी एक दिन भी नहीं पूरा हुआ था और फिर से एक छोटा सा लक्ष्य बन चुका था। दिमाग़ की जद्दोजहद में एक ही बात बार बार घूम रही थी, ज़िन्दगी का सार यही है- "एक लक्ष्य के बाद दूसरा लक्ष्य और फिर तीसरा भी; या ये कहिये ज़िन्दगी ख़ुद एक छोटा सा लक्ष्य है!"
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