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पंजाबी लोक साहित्य और संगीत


(वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165; लोकगीत शृंखला-16)

लोकगीतों की मौखिक परंपरा रही है—डॉ. वनिता

लंदन, 21-01-2024: विश्व-प्रसिद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में तथा प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में, दिनांक 20 जनवरी 2024 को वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165 का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह आयोजन लोकगीत शृंखला-16 के तहत पंजाबी लोक साहित्य और संगीत को समर्पित था तथा इसके प्रतिभागी गायक, चर्चाकार, वक्ता और विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्रों के जाने-माने हस्ताक्षर थे। साहित्य अकादमी और पंजाब साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत, डॉ. वनिता ने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि पूरी संगोष्ठी के दौरान प्रतिष्ठित साहित्यकार इस संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ. मधु चतुर्वेदी पंजाबी लोकगीत परंपरा के सम्बन्ध में अपने वक्तव्यों से श्रोता-दर्शकों का आद्योपांत ज्ञानवर्धन करती रहीं। संगोष्ठी भारतीय समयानुसार रात्रि 8:30 बजे से आरंभ होकर लगभग डेढ़ घंटे तक चली। संगोष्ठी का मुख्य आकर्षण था—डॉ. शिव दर्शन दुबे द्वारा गाए गए पंजाबी लोकगीत जिनमें शास्त्रीयता का विशेष संपुट था। 

संगोष्ठी का संचालन किया सुश्री प्रिय लेखा ने जबकि डॉ मधु ही डॉ. दुबे से पंजाबी लोकगीत परंपरा से सम्बन्धित गीतों को सुनाने का आग्रह करती रहीं और इस प्रकार दर्शकों को बाँधे रहीं। डॉ. दुबे का साथ दिया सुश्री प्रिय लेखा ने जिन्होंने अपनी स्वरलहरियों से माहौल में चार चाँद लगा दिए। आरंभ में, सिंगापुर साहित्य संगम की संयोजक डॉ. संध्या सिंह ने संगोष्ठी का परिचय देते हुए कहा कि लोक साहित्य का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है और यह हमारे परिवार और समाज को विस्तार देता है। साहित्य के एक अभिन्न अंग के रूप में लोकगीत आज भी प्रासंगिक हैं। तदनंतर, संगोष्ठी को अग्रेतर ले जाते हुए डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कहा कि जब हम लोक की बात करते हैं तो उसमें लोक से सम्बन्धित सभी आयाम सम्मिलित होते हैं। भक्ति, शक्ति, अनुरक्ति, परम्पराएँ, मान्यताएँ, सामाजिक सरोकार, लोक व्यवहार, जीवन के संस्कार, पर्व, त्योहार सभी लोक जीवन के आधार हैं। दसों सिख गुरुओं की रचनाओं में भी ये बातें अभिभावी हैं जबकि गुरु नानक देव ने राम की महत्ता को लोक जीवन में विशेष महत्त्व दिया है। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शिव दर्शन दुबे ने गुरु नानक देव-रचित ‘राम सुमिर, राम सुमिर’ का हृदय-स्पर्शी गायन प्रस्तुत किया। डॉ. मधु ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह में रामभक्ति की पराकाष्ठा परिलक्षित होती है तथा उन्होंने राम के अश्व पर एक वंदन लिखा है जो अद्भुत है। पंजाब में प्रेम-आधारित लोकगीतों की प्रचुरता है जिनमें ‘हीर’ लोकगीत विशेष लोकप्रिय है। डॉ. शिव दर्शन दुबे ने लोकगीत ‘हीर’ के कुछ अंश सुनाकर दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया। डॉ. मधु ने बताया कि ‘हीर’ लोकगीत शृंगार से आरंभ होकर अध्यात्म तक पहुँचता है। डॉ. मधु ने पंजाबी लोकगीत ‘छल्ला’ के सम्बन्ध में बताया कि इसका अंदाज़ सूफ़ियाना होता है जिसमें लौकिक व्यवहार का उल्लेख होता है। तदनंतर, उन्होंने ‘माहिया’, ‘टप्पा’ जैसे लोकगीतों के छंद-विधान की चर्चा की। प्रिय लेखा ने हिंद के बाबत एक ‘माहिया’ लोकगीत ‘जुग-जुग जीवे’ सुनाया। उसके बाद, डॉ. दुबे ने ‘कोठे ते आ माहिया . . . मिलना तो मिल आके’ जैसा माहिया लोकगीत सुनाकर दर्शकों को सम्मोहिनी-पाश में बाँध दिया। इस गीत में प्रिय लेखा ने डॉ. दुबे के साथ सह-गायन किया। इसी क्रम ने डॉ. मधु ने बताया कि पंजाबी लोकगीतों में बड़ी विविधता होती है। शक्ति और भक्ति दोनों के पीछे प्रेम का भाव प्रधान होता है। 

संगोष्ठी की अध्यक्षा डॉ. वनिता ने बताया कि लोकगीत की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसकी मौखिक परंपरा रही है जबकि लिखना आरंभ नहीं हुआ था। लोकगीत पारंपरिक साज-यंत्रों के संगत में गाए जाते रहे हैं। लोकगीतों के साज-यंत्र भी अलग ही रहे हैं। डफली, ढोलक, सारंगी, तुम्बी आदि सभी लोक साज-यंत्र हैं। उन्होंने कहा कि लोकगीतों में प्रेम जैसे भाव की मूल मानवीय प्रवृत्ति सर्वत्र एक-समान होती है। लड़कियों पर लगने वाली प्रेम की वर्जनाएँ भी सभी जगह एक-जैसी होती हैं। 

इस संगोष्ठी के सम्बन्ध में जापान के हिंदी साहित्यकार टोमियो मिजोकामी, भारत से इंद्रजीत सिंह, इंग्लैंड के निखिल कौशिक जैसे प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों ने कुछ गीतों के अंश सुनाते हुए अपनी-अपनी टिप्पणियाँ दीं। कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने ऑनलाइन मंच पर उपस्थित सभी दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया। श्रोता-दर्शकों में आशीष रंजन, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, इंद्रजीत सिंह, कस्तूरिका, जय वर्मा, किरण खन्ना, कृष्णा बाजपेयी, संध्या सिलावट, तातियाना ओर्नास्किया, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, मधु वर्मा, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया, भव्या सिंह उल्लेखनीय हैं। संगोष्ठी के समापन पर, डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. संध्या सिंह समेत अनेक दर्शकों ने इच्छा व्यक्त की कि पंजाबी लोकगीत पर एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए। 

इस संगोष्ठी के आयोजन में तकनीकी सहयोग प्रदान किया भारत के ही तकनीकी विशेषज्ञ कृष्ण कुमार ने। इस संगोष्ठी में सहयोगी संस्थाएँ थीं—वैश्विक हिंदी परिवार और सिंगापुर साहित्य संगम। 

(प्रेस विज्ञप्ति—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र) 

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