2015
काव्य साहित्य | कविता योगेश कुमार ध्यानी22 Jan 2016
अभी कुछ दिनों तक
तारीख़ के आख़िर में
भूलवश आते रहोगे तुम
फिर काटे जाओगे लकीर से
और वहाँ दर्ज होगा
तुम्हारे उत्तराधिकारी का नाम
तुम्हें शायद रास ना आए
मगर यही नियति है
सदियों की प्रथा
कि समय की म्यान में
नहीं रह सकते
दो बरस, एक साथ
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पाण्डेय सरिता 2021/05/08 10:41 PM
बहुत सुन्दर! समय की म्यान में नहीं रह सकते एक साथ दो वर्ष