आवरण
काव्य साहित्य | कविता नरेश अग्रवाल25 Aug 2016
अचानक कोई जाग जाएगा
और देखेगा जो उसने खोया था
पा लिया है
और हर पायी हुई चीज़ को
रखना पड़ता है सुरक्षित अपने पास ही
और संचय पुराने होते जाते हैं
समय उन्हें ढकते चला जाता है
आवरण पर आवरण
और जीवन के आवरणों से ढकी हुई चीज़ों से
किसी बहुमूल्य को निकाल लेता हूँ एक दिन
सारी सफाई के बाद एक उत्तम खनिज
जीवन के किस रस में ढालना है इसे
अब यह हमारी बारी है।
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