अच्छा है, मैं दूध न पीता
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता संजीव ठाकुर15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
दूध-मलाई खाकर आई
बिल्ली मौसी
पूछा चूहे ने -
‘अब क्यूँ है सूरत ऐसी?’
बिल्ली बोली - ‘वक़्त बुरा है,
क्या बतलाऊँ चूहे राजा?
रद्दी था वह दूध
ज़रा भी न था ताज़ा!’
‘अच्छी चीज़ों का मिलना
अब तो कोसों दूर
ग्वाले अब न दूध बेचते
पानी था भरपूर!’
‘शुद्ध दूध तो पीती थी
पहले मेरी नानी
अब तो बस रह गए उसी के
किस्से और कहानी!’
‘और मलाई की न पूछो
कैसी थी वो?
बस था रंग सफ़ेद ,
स्वाद में बोगस थी वो!’
चूहा बोला -
’अच्छा है, मैं दूध न पीता’
होता मैं कमज़ोर ,
मलाई ऐसी खाता!’
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