अख़बार
काव्य साहित्य | दोहे महेन्द्र देवांगन माटी1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सुबह सुबह हर रोज़ की, आता है अख़बार।
चुस्की लेते चाय की, पढ़ते बाबा द्वार॥
ताज़ा ताज़ा रोज़ की, ख़बरों का भंडार।
बच्चे बूढ़े प्रेम से, पढ़ते हैं अख़बार॥
सभी ख़बर छपती यहाँ, अलग अलग हैं पृष्ठ।
शब्दों का भंडार हैं, कहीं सरल तो क्लिष्ट॥
फैल रहा है विश्व में, कोरोना का रोग।
बता रहे अख़बार में, कैसे जीयें लोग॥
कोई देखे चित्र को, कोई देखे खेल।
कोई देखे भाव को, कोई देखे रेल॥
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