अँधेरों के दिन
काव्य साहित्य | कविता लक्ष्मी शंकर वाजपेयी3 Dec 2008
बदल गए हैं अँधेरों के दिन
अब वे नहीं निकलते
सहमें, ठिठके, चुपके चुपके रात के वक़्त
वे दिन दहाड़े घूमते हैं बस्ती में
सीना ताने
कहकहे लगाते
वे नहीं डरते उजालों से
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