अनकही बातें
काव्य साहित्य | कविता नीरज गुप्ता1 Apr 2019
उलझा हुआ हूँ
कुछ दिनों से,
एक बात मन में
आ खटकती है।
समेटे फिरता हूँ
वो अनकही बातें,
जो अब बस
सदृश भटकती हैं।
वक़्त भी तो न था
जो सुना सकता तुम्हें,
हाँ बातें तो जरूर थीं
जो अब नागवार गुज़रती हैं।
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