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बैबून और ज़ेबरा

ज़ूलूलैंड की लोककथा

वृक्षों से उतरकर बैबून (कुत्ते की शक्ल का अफ्रीकी बंदर) झील के किनारे रहने के लिए आ गया। उसने घोषणा कर दी कि वह जल का राजा है। उसके थोड़े ही दिनों बाद, चिलचिलाती धूप में दो ज़ेबरे प्यास बुझाने के लिए झील के पास आए। बैबून ने यह कहते हुए उन्हें पानी पीने से मनाकर कि यह मेरा पानी है अतः इसे कोई और नहीं पी सकता। जो भी पानी पीने की कोशिश करेगा वह मारा जाएगा।

डर कर दोनों ज़ेबरे भाग गए। कुछ समय बाद उनके एक बच्चा पैदा हुआ जो बड़ा होकर अति विशाल और सुदृढ़ निकला। एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, ‘‘मै प्यासा हूँ, क्या मैं पानी पी सकता हूँ?’’

‘‘पानी कहाँ है?’’ माँ ने उत्तर दिया, ‘‘जल का राजा झील की अच्छी तरह रक्षा करता है, इसलिए हम पानी नहीं पी सकते।’’

युवा ज़ेबरे ने कहा, ‘‘पानी सब के लिए होता है। मैं तो पियूँगा।’’

इतना कहकर वह झील की ओर चल दिया। वहाँ उपस्थित बैबून ने कहा, ‘‘क्या मैंने तुम्हारे लोगों को नहीं बता दिया है कि यह मेरा जल है। जो भी इसे पिएगा वह मृत्यु को प्राप्त होगा।’’ लेकिन युवा जेबरा बहुत प्यासा था अतः झील के पास डटा रहा। ‘‘मैं प्यास से मर रहा हूँ, मुझे पानी की जरूरत है’’, इतना कहकर वह दौड़कर झील के किनारे पहुँचा और पानी पी लिया।

बैबून उठकर खड़ा हुआ और कहा, ‘‘अब तुम्हारे दिन पूरे हो गए हैं।’’ उसके बाद युवा ज़ेबरे और बैबून में लड़ाई होने लगी। वहीं पास ही बैबून ने आग जला रखी थी। जैसे ही लड़ाई बढ़ी, बैबून ने मज़ाक में कहा, ‘‘नदी के उस पार पहाड़ियों की चट्टानों में मेरा जन्म हुआ था। लड़ाई के दौरान तुम मुझे फेंको तो कम से कम उस पहाड़ी पर तो फेंकना ही।’’

उनका संघर्ष लगातार चल रहा था और वे धीरे-धीरे बैबून की आग के पास आ चुके थे। तभी बैबून ने ज़ेबरे को आग में फेंक दिया। ज़ेबरा उठकर आग से बाहर आया। जलने से उसे पीड़ा हुई और इस पीड़ा ने उसे नई शक्ति दी। उसने बैबून को पकड़ लिया और पहाड़ी की चोटी पर यह कहते हुए फेंक दिया, ‘‘अब वहीं चट्टानों में रहो जहाँ तुम्हारा जन्म हुआ था। अब कभी इन झीलों या नदियों के किनारे फटकना तक नहीं।’’

और इस प्रकार पानी हरेक के लिए उपलब्ध हो गया।

अब बैबून चट्टानों से गिरता भी है तो कष्टकारी चटियल मैदान पर आ गिरता है। आग से जल जाने के कारण ज़ेबरे के शरीर पर आज भी काली पट्टियाँ बनी हुई हैं। तब से बैबून चट्टानों में रहते हैं और ज़ेबरा मैदानी भागों में।

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