बंद होठों को अब तुम्हें खोलना चाहिये
काव्य साहित्य | कविता सुशील कुमार31 Oct 2008
बंद होठों को अब तुम्हें खोलना चाहिये।
चुप रहे इतने दिन, दुःख सहे कितने दिन
विदीर्ण हॄदये, अब तुम्हें बोलना चाहिये।
कितनी धैर्य-परीक्षा दे, करोगी अपनी रक्षा
माते, केशपाश तुम्हें अपना खोलना चाहिये।
हे शिवरूपा, हे आद्याशक्ति, हे कपाल-कुंडला
तुम्हें अपना अंतस्ज्वाल टटोलना चाहिये,
हृदय में पड़ा महामौन अब तोड़ना चाहिये।
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