भारत माता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रजत रानी मीनू1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
कोरोना में
लॉक डाउन
मेरा कैसा लॉक डाउन?
घर नहीं,
आँगन नहीं
कहाँ ठहरूँ?
ताला लगा कर
कहाँ बैठूँ?
कहाँ निश्चितता से
बैठ कर काम करूँ?
मेरे तो
पेट में कुनमुना रही है
लातें मार रही है
नौ महीने की
आजन्मी संतान।
ओह! प्रसव वेदना
अब कैसे सँभालूँ
अकेले
जन्मती संतान को?
राह का दर्द
प्रसव के दर्द में घुल गया
दो टाँगों के बीच
कुछ अटकने लगा
सृष्टि जन्मने लगी
वह ठहरी दो पल
संतान को
पकड़ा गोद में
नाल कौन काटे
कैसे काटूँ इस बंधंन को?
चल पड़ी थी
भारत माता
हाथ में पकड़े नाल
और संतान को।
उसकी टाँगें
खून से लथपथा गईं थीं
कपड़े रँग गये थे
होली के रंग की तरह
खून मिश्रित हो गया था
ज़ख़्म और सृष्टि दोनों का
निर्माण की क्रिया में।
लोग देख रहे थे
मुझसे सहानुभूति थी
मगर-
वे सब,
मेरी तरह विवश थे
कोरोना युग के साथी थे
उनके और मेरे
सिर पर
सिर्फ़ आसमान था
पैरों के नीचे
धरती थी
वह भी उनकी नहीं थी
पता नहीं
कौन उनको
घुड़क दे
कौन वर्दीधारी
मुर्गा बना दे
उन्हें डंडा बजा दे
यह भी कोई जगह है
बच्चे पैदा करने की?
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