भूख
काव्य साहित्य | कविता लालजी सिंह यादव14 Jul 2016
भूख तृषित करती तन को,
भूख भ्रमित करती मन को।
भूख है ऐसी अभिलाषा,
उत्तेजित करती जन जन को।
जो भूख उदर में जागृत हो,
भोजन पाकर वह मिट जाती।
जो भूख हो सुख संपत्ति की,
अवसर पाकर वह बढ़ जाती।
यह भूख है ऐसी दौलत की,
अंकों में मन उलझा देती।
सुख चैन छीन लेती मन का,
सत् पथ से मन भटका देती।
एक भूख राजसत्ता की है,
जो पैसे के बल पर चलती।
नियम को करती दरकिनार,
जो जनता को हर पल छलती।
एक भूख है ख़ून ख़राबे की,
जो आतंकी बनकर दिखती।
क्या मिलता है इससे भाई,
जो मानवता को ही लीलती।
ऐसी भूख जगायें मन में,
जिससे प्यार बढ़े जन जन में।
स्वस्थ समृद्ध हो हर घर आँगन,
झलके जीवन हर तन मन में।
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