चाँदनी
काव्य साहित्य | कविता नीरज सक्सेना1 Mar 2020 (अंक: 151, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
अहा मेरी प्रिया मेरी चाँदनी
आभा बिखेरती नव यौवनी
उसकी आभा से दमका मुख
जो ठहर गयी वो मेरे सम्मुख
वो चारु चंद्र की चंचल किरणें
अँधियारे से करती परिणय
विनष्ट तिमिर छितराती उदय
अकिंचन मन में जगा प्रणय
छन छन दुल्हन बन लेती फेरे
अस्पर्श उतर गई वो मन में मेरे
वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
नयनों की पाँखों से मौन मिलन
नीरव पद से करती हृदय स्पंदन
कौमुदी उजियारी अप्सरा जैसी
धवल स्वेत चाँदनी मेरी प्रेयसी
नितांत समीप वह मेरे शयन
हृदय आलिंगन वह बसी नयन
घन के घने आँचल को चीरे
कर अशक्त हर बाधा ज़ंजीरें
वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
अहा मेरी प्रिया मेरी चाँदनी
आभा बिखेरती नव यौवनी
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