चढ़ता सूरज
काव्य साहित्य | कविता ज़कीया ज़ुबैरी28 Apr 2008
नव प्रभात की ख़बर
नई ज़िन्दगी
चहल पहल,
दौड़ धूप
ख़ुशी ग़म
हर मोड़ पर एक शोर !
सूर्योदय!
तेज़ रोशनी
तपती धूप
ठण्डी धूप
पूजा पाठ
शराबोर जिस्म
झुलसे काले चमकते बदन
मज़बूत बाज़ू
जीर्ण शीर्ण ढाँचे
तितलियाँ षोडषियाँ
झनकती पायल
लचकती कमर
कनखियों के खेल
उछलते, कूदते, दौड़ते, भागते
काले, गोरे, नीले, पीले बच्चे
पीछे भागती शोर मचाती माएँ
सूरज की ख़बर
ताण्डव नृत्य
डेढ़ नेज़े पर सूरज
चकाचौंध रोशनी
अक़ीदत मुहब्बत
सुकून बेचैनी
हर परत खुल जाती है
हर किताब पढ़ ली जाती है
सूरज जब चढ़ता है
पूजा उसकी ही होती है।
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