चलोगी! मेरे साथ तुम
काव्य साहित्य | कविता दीप कुमार15 Jul 2007
चलोगी! मेरे साथ तुम
बस दो पल, दो कदम
एक पल जीवन का और एक कदम मृत्यु का
हो जाएँगे पूरे हम
बोलो!
बोलो!
चलोगी! मेरे साथ तुम
बाँट लेंगे खुशियाँ आधी आधी
माँग लूँगा दुख सारे तुम्हारे
तपोगी जीवन की धूप में जब तुम
कर सकता हूँ हाथों की ओट तो कम से कम
चलोगी! मेरे साथ तुम
हारना सीखा नहीं है मैंने पर
जीतने की भी ख़्वाहिश नहीं है
बस बिखरने लगूँ जब मैं
हँस कर साथ खड़े रहना हरदम
बोलो!
बोलो!
चलोगी! मेरे साथ तुम
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