छद्माभिमान
काव्य साहित्य | कविता योगेश कुमार ध्यानी22 Jan 2016
हम दर्पण को
पहनाते हैं तमगे
और फिर
उसमें देखते हैं
अपनी छवि को
ऐसे भरते हैं भूख
हम अपने बनाए
छद्माभिमान की
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पहनाते हैं तमगे
और फिर
उसमें देखते हैं
अपनी छवि को
ऐसे भरते हैं भूख
हम अपने बनाए
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