छोटकी और मोटा हाथी
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा सौरभ कुमार15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
चींटियों का झुंड भोजन की तलाश में निकला था कि रास्ते पर मोटे हाथी ने एक चींटी को कुचल दिया और अपनी बाहु की ताक़त दिखाने लगा। चींटियों का झुंड उसकी इस करतूत को अनदेखा कर और आगे बढ़ा। उन्हें मालूम था कि वे मोटे हाथी के साथ दो-दो हाथ नहीं कर सकते। झुंड में छोटकी चींटी सब कुछ देख रही थी। उसे अपने पिताजी और दादाजी के प्रति बहुत क्रोध आया और रास्ते के एक किनारे मुँह बनाकर चुपचाप बैठ गयी। सभी बड़े-बुज़ुर्ग उसे समझाने लगे कि मोटे हाथी को हम नहीं धमका सकते, हम उसके सामने मजबूर है, लाचार है। अंततः सभी छोटकी चींटी की हठ के आगे थक-हारकर ग़ुस्सा करने लगे।
तभी छोटकी चींटी के दादा जी आए और छोटकी चींटी से कहा, "बेटी कुछ समय पहले की बात है। पद्मा नदी के किनारे हम रहने के लिए एक अच्छा स्थान तलाशने निकले थे और तब मोटा हाथी बार-बार हमारा घर तोड़ दिया करता था। फिर एकदिन उचित समय देखकर मैं उसके नाक में घुस गया और डंक मारने लगा। मोटा हाथी रो-रोकर अपने भूल पर पछतावा करने लगा, मोटा हाथी हमसे माफ़ी माँगकर कई वर्षों तक दूर के जंगलों में भाग गया। उचित सबक़ पाकर मोटे हाथी ने छोटे-छोटे प्राणियों को सताना भी छोड़ दिया।"
छोटकी चींटी का मुँह फिर ख़ुशी से खिल गया।
"बेटी अभी हम भोजन के तलाश में निकले हैं, अपने काम पर निकले हैं। बदला लेने का यह उचित समय नहीं है। सही समय देखकर हम उसे चित कर देंगे।"
दादाजी के बात सुनकर छोटकी चींटी बहुत प्रसन्न हुई और पूर्व की भाँति पहले पंक्ति में पहले-पहले चलने लगी। ख़ुशी से अपने दादाजी के क़िस्से औरों को भी सुनाने लगी।
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पाण्डेय सरिता 2021/09/16 11:36 AM
बहुत खूब