दीया स्नेह बाती
काव्य साहित्य | कविता अतुल चंद्रा17 Mar 2017
हर किसी में तेरी छवि
का ध्यान अब धरता हूँ मैं
मिल न जाये कोई ऐसा
ध्यान यह करता हूँ मैं
मिल गयी कोई परस्पर
रूप गुण प्रखर में
प्रेम उन्नत हृदय दयालु
सर्व गुण सम्पन में
उन गुणों को फिर भी मैं
कमतर कहूँगा हे प्रिये
प्रेम तेरा कम किसी से
यह नहीं होगा प्रिये
प्रेम दीपक के लिए थे
अग्नि मैं स्नेह तुम
मैं आग जैसे जल रहा
हो गया है स्नेह गुम
पर कई बार दीये में
स्नेह रीत होने पर भी
अग्नि रहती है बनी
समग्र जल जाने पर भी
स्नेह अग्नि को जोड़े रखना
बातियों का काम है
इसलिए विचारकों में
इसका बड़ा ही नाम है
क्या बातियाँ है आत्मा
जो जोड़ कर रखती है
अग्नि शरीर औ
स्नेहरूपी परमात्मा
और दीपक यूँ कि जैसे
आयु का वह दान हो
अलग अलग आकार जैसे
कुम्हार का वरदान हो॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं