देश मेरा बढ़ रहा
काव्य साहित्य | कविता कुलदीप पाण्डेय 'आजाद'15 Feb 2020
देश मेरा बढ़ रहा।
प्रगति सीढ़ी चढ़ रहा।
देश के उत्थान में सब,
साथ मिल अब चल रहे हैं।
ख़ून से सींचा जिसे था,
हर सुमन अब खिल रहे हैं।
कंटकों को आज देखो
स्वयं ही वह जल रहा है।
देश मेरा बढ़ रहा।
गोद में बैठे अभी तक,
थे वही अब चल पड़े हैं।
जो कभी विघटित मनुज थे,
आज वे इकजुट खड़े हैं।
झाँक देखो हर हृदय अब,
एक भाषा पढ़ रहा है।
देश मेरा बढ़ रहा।
लाल वसुधा दिख रही,
अब भी सुनहरे ख़ून से।
निर्भय तभी उड़ते यहाँ,
नभचर गगन को चूम के।
ख़ून के हर एक कण से,
वीर प्रतिक्षण पल रहा है।
देश मेरा बढ़ रहा।
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