धरित्री
काव्य साहित्य | कविता प्रभात कुमार15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
धान्यागार है वो धरित्री
सुरम्य कर उसे ये प्रकृति
महिषी बनी धरित्री
धरा की गोद में,
सर्वतोमुख सरोजिनी सरोवर में,
सर्ग करता उस नीर में,
उज्ज्वल सी किरण
पड़े उस सरोज में
धरा ले जिसे गोद में,
गिरि से गिर निर्झर धारा
कूलंकषा इसकी वाहिनी है
जल की प्रवाहिनी है
मानव जन्म का आवरण है
धरित्री सब में पावन है
है जो हम सब का पालनहार
कम कर, रे मानव अपना संहार
धरित्री ही है,अपना संसार॥
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टिप्पणियाँ
यन यस आर शर्मा 2021/09/16 01:57 PM
आप का कविता पढ़कर बहुत खुश हूँ
कृपया टिप्पणी दें
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ज्योत्स्ना रैना 2021/09/21 09:07 PM
आजकल के समय की आवश्यकता के अनुसार कवि प्रभात कुमार जी ने अपनी इस सुन्दर कविता धरित्री में प्रकृति के प्रति एक मानव की जागरूकता को अच्छी तरह से समझाया है।