ज्ञान की डोरी
काव्य साहित्य | कविता प्रभात कुमार15 May 2021 (अंक: 181, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पढ़ावत-पढ़ावत मास बीत भइले,
सीखन पाठ पढ़त न कोई
ले प्रभात की डोरी सबहुई
सागर पार करे तब कोई,
सीख-सीखावन की बारी आई
मुँहज़ोर करें सब कोई
लगा न जोर मनवा में
कालिक पोते निज मन होई,
हाँस लगाई लोगन पर
मन सुख कर आपणों
ज्ञानी सबहुँ होई,
निज मन निर्मल करे न कोई
पाठ-पढ़ावे हर कोई,
देख प्रभु करे संताप
मूर्खन का है क्रिया-कलाप,
ज्ञान डोर की पकड़े वाणी
उह लोगन भये सब ज्ञानी॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
पाण्डेय सरिता 2021/05/15 09:27 AM
बहुत खूब
डॉ सुषमा देवी 2021/05/15 07:27 AM
प्रेरक कविता के लिए साधुवाद
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
sangeeta Mishra 2021/05/16 03:29 PM
Good