दिलासा
काव्य साहित्य | कविता अनिल कुमार15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
माँ, उम्मीद ना टूटने देना
तेरे आँचल में फिर समाएगा तेरा सलोना
1.
माँ, चल पड़ा हूँ छोड़ कर अब डेरा
रास्ते में कई रातें बीतीं, कई बार हुआ सबेरा
पोटली में ले रखी हैं रोटियाँ और चटनी
ख़ूब काम आया सिखाया हुआ सब तेरा
माँ, तकती रहना राहें, राहों में है तेरा सोना
तेरे आँचल में फिर समाएगा तेरा सलोना
2.
माँ, संकट तो अति गंभीर है
मेरे जैसे हज़ारों बेटों की भीड़ है
सब चल रहे थामे हाथों में साहस का डंडा
कुछ हिम्मत हार गए, कुछ हाथ पसार गए
मगर मैं पहुँचूँगा, तुम धीरज ना खोना
तेरे आँचल में फिर समाएगा तेरा सलोना
3.
माँ, हम ग़रीबों का कोई ना होता साथी
काम निकालने वाले ये बड़े लोग हैं स्वार्थी
जब इनसे हमारा पेट भी ना पाला गया
जंगल के रास्ते चल पड़े जंगल की लिए बाती
माँ, अभी बहुतू दूर हूँ, मगर तुम दुखी ना होना
तेरे आँचल में फिर समाएगा तेरा सलोना
4.
माँ, आज नई सुबह नई आस जगी
रेल की पटरियों से ख़ूब दूर तक रेस लगी
अब लगता है, थक गया हूँ माँ
आज तो चिकनी पटरियों पर ख़ूब आएगी नींद
कल जागा तो एक झोंके में तेरी गोद में होगा तेरा ये खिलौना
तेरे आँचल में फिर समाएगा तेरा सलोना
5.
माँ तकती रही पगडंडियाँ
बेटा, अब क्या भूल गया रस्ता या,
गाँव में ही छुपकर खेल रहे बचपन की अठखेलियाँ
आज चार दिन बीत गए, जो आने को कहा था
माँ, व्यथित चित्त, मन ही मन बुदबुदाया
तभी अचानक शोर सा आया ..
दालान पर गाड़ी रुकी
सफ़ेद वस्त्र में लिपटा माँ का लाल
माँ काठ की मूर्ति, गिर पड़ी
उम्मीदें टूट गईं, आँचल छितरा गया
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