गुमनामी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विक्रम सिंह ठाकुर4 Jan 2016
गुमनाम शहर मे गुमनाम सी गलियाँ
गुमनाम सी गलियों में गुमनाम से मोहल्ले
गुमनाम से मोहल्लों में गुमनाम से घर
गुमनाम से घरों में गुमनाम से चेहरे
गुमनाम से चेहरों के गुमनाम से दिल
गुमनाम से दिलों में गुमनाम सी उम्मीदें
जो धकेल रहीं हैं उनको गुमनामी की तरफ़
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