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हम अकैतव ही रहेंगे! 

कुछ अवशेषों से पता तो चला है मगर, 
नहीं कह सकते विश्वास के साथ,
कब निर्माण हुई मानव सभ्यता।
पर आज क्यों ये बात मन में आयी तेरे
अपने मन से ही पूछा मैंने।
वो बोला वैसे बात तो ये हमेशा ही मन में थी,
कहीं तो दबी सी,
जब आपदा आयी तो बात भी बाहर निकल आयी
आज आया है कुछ समय ऐसा
कई प्रश्नों ने मन में भीड़ बना रखी है।
फिर मैंने कहा– बाहर भीड़ पर पाबंदी है,
अच्छा है जो मन ही में रही है।
कठिन हैं यह क्षण जब 
जीवन संग्राम एक नए रूप में हो रहा है।
आज से पहले भी ऐसा हुआ था।
फिर मन ने ही उत्तर दे दिया ‘हाँ!’
जब अवशेषों से तूने मानव सभ्यता का काल-मापन कर लिया
और उसपर विश्वास भी कर लिया,
तो इस धारणा को आगे लेकर ही मान ले ऐसा पहले भी हुआ है।
मानव उसमें से तपकर निकला है
तू उस की धरोहर है जो हर बार हर मुश्किल से उभरा है।
यह समय भी बीत जाएगा।
उसका यह विनिर्घोष  सुन –
मैं भी कह उठा सारी मानव जाति की ओर से,
हम अकैतव ही रहेंगे। हाँ हम अकैतव ही रहेंगे।

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