इंद्रियाँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कनिका वर्मा9 Sep 2016
उसने कहा
एक तस्वीर भेजो अपनी
मैंने जवाब में लिखा
दिल में बसने वालों की
तस्वीर का इंतज़ार
नहीं किया करते
आँखों के अलावा
और भी इंद्रियाँ हिसाब
माँगतीं हैं
नाक को क्या कहोगे
जो मेरे शरीर की महकती ख़ुशबू
में डूबना चाहेगी
कानों को कैसे समझाओगे
जो मेरी मोहक आवाज़
के गीतों में बँधना चाहेंगे
होठों की ज़िद कैसे पूरी करोगे
जो मेरे लबों पे अपनी निशानी छोड़ना चाहेंगे
त्वचा को कैसे मनाओगे
जो मेरे तन के स्पर्श में
हर साँस लेना चाहेगी
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