इन्हें मात्र मज़दूर मत समझो
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष गोहिल15 Nov 2020 (अंक: 169, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
वो चुप है
पर,
उनकी आँखों में धधकता लावा है,
जो काफ़ी है सत्ता को ऊखाड़ फेंक देने को।
जो हुजूम जा रहा है
वो पस्त है, त्रस्त है – तुम्हारे कारण।
इन्हें ओर परेशान मत करो।
जब भी इनका क्रोध
रौद्र रूप धारण कर लेगा
तब तुम अपनी सत्ता बचा नहीं पाओगे।
इन्हें मात्र मज़दूर मत समझो
ये तो हैं
देश के संवाहक।
इनकी ख़ामोशी का मतलब नहीं समझोगे
तो,
एक दिन सत्ता को ही ख़ामोश कर देगी इनकी चुप्पी।
सावधान,
वो चुप है
पर मूर्ख नहीं।
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