अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ईश्वर की कार्यप्रणाली

एक हिरनी को नदी किनारे पानी पीते देख बहेलिये ने तीर चलाने की सोची। परन्तु हिरनी बोल पड़ी, "ठहरो, तुम मुझे मारकर खा लेना पर पहले मुझे अपने बच्चों को प्यार कर उन्हें अपने पति के पास पहुँचा आने दो।" कुछ सोचकर बहेलिये ने हिरनी की बात मान ली। हिरनी ख़ुश होकर अपने बच्चों के पास आई, उन्हें प्यार किया और फिर पति को सारा क़िस्सा सुनाया। हिरन ने कहा, "तुम बच्चों को लेकर घर जावो और मैं बहेलिये के पास जाता हूँ।" हिरनी ने कहा, "यह कैसे हो सकता है? वचन में मैं बँधी हूँ, तुम नहीं।" यह सुन बच्चे बोले, "हम अकेले कहाँ रहेंगे।" अतः चारों बहेलिये के पास पहुँचे। उन सब को देख बहेलिये ने सोचा कि उसके हाथ लाटरी लग गई है।

उधर हिरनी की बातें सियार ने सुन लीं थी। वह दौड़कर शेर के पास गया और सारा क़िस्सा बताकर बोला, "हज़ूर, आपका अन्न भंडार लूटा जा रहा है। चलिये, जल्दी कुछ करिये।"

अतः जैसे ही बहेलिया हिरणों पर तीर चलाने को हुआ तो पीछे से झपटकर शेर ने उसे दबोच लिया। हिरनी अपने परिवार सहित जंगल में भाग खड़ी हुई।

यह कथा वचन निभाने के महत्व को रेखांकित तो करती ही है पर यह भी बताती है कि सुजनों की रक्षा के लिये ईश्वर कभी-कभी दुर्जनों का भी उपयोग करते हैं। इसलिये सक्षम होकर भी ईश्वर दुर्जनों का संपूर्ण नाश नहीं करते।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

बाल साहित्य कविता

बाल साहित्य कहानी

लघुकथा

कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं