पकवान
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता भूपेंद्र कुमार दवे25 Feb 2014
लड्डू पेड़े से दिन होते
रसगुल्लों-सी रातें
चंदा सूरज से हम करते
दिल की सारी बातें
गर जलेबी पेड़ पर होती
हलुआ उगाती घास
हम भी उनकी सेवा करते
जब तलक चलती साँस
गर चमचम की बारिश होती
कभी न खुलता छाता
चाहे जितना काला बादल
रस बरसाने आता
खीर अगर नदिया में बहती
हम रोज़ नहाने जाते
पत्थर सब बर्फी होते तो
कुतर कुतर कर खाते
मम्मी कहती खाना खा लो
हम क्यूँ रोटी खाते
दूध भरा गिलास छोड़ कर
बाहर भागे जाते।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
बाल साहित्य कविता
बाल साहित्य कहानी
लघुकथा
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं