जानती हूँ मैं
काव्य साहित्य | कविता रंजना भाटिया17 Jun 2007
जानती हूँ मैं तेरी मंज़िल नहीं हूँ
जानती हूँ कि मैं तेरा रास्ता भी नहीं हूँ,
पर कुछ देर तो साथ चले थे हम,
कुछ देर तो एक दूसरे के सुख दुख के साथी थे हम,
एक बार पीछे मुड़ के तो देख मेरे कुछ देर के हमराही,
जो सपने, जो धड़कनें, जो जीने की उमंग,
तुम दे गए हो.....
मैं उन्हें अपने साथ समेटे आज भी,
उसी दोराहे पर खड़ी हूँ,
यह जानते हुए भी कि... मैं तेरा रास्ता नहीं हूँ,
मैं तेरी मंज़िल भी नहीं हूँ......
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