काफ़िर
काव्य साहित्य | कविता ऋतु सामा1 Sep 2020
काफ़िर हूँ
रंज छुपाता हूँ
तेरे दर पे आके
मैं बस मुस्कुराता हूँ
क़तरा हूँ
तेरी ही ज़िन्दगी का
दायरों को मानता नहीं
दिल में रहूँगा सदा
मैं कोई अंत जानता नहीं
ज़िद हूँ
कभी तुम्हारे अलफ़ाज़ बनके
कभी तुम्हारी रूह की तहों में
यूँ लुक छिप करके
तुमसे ही मैं बचूँगा
चाहत हूँ
जो पूरी कर लो तो अधूरा रहूँ
और छोड़ना चाहो जो साथ
एक आस बनके तुमको तड़पाऊँ
मैं तुम हूँ कभी
कभी एक अनजान
ढूँढोगी तो भी ना मिलूँगा
बरसों की है तुमसे पहचान
रोज़ उलझन सी ज़िन्दगी को
जब तुम सुलझाओ
मैं वो हूँ
जो देता जाऊँ तुम्हें मुस्कान
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}