कल के खेल
काव्य साहित्य | कविता शिवेन्द्र यादव1 Jul 2020 (अंक: 159, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
कभी हम खेला करते थे
खिलौनों से, धूल-मिट्टी, पत्तों, डालों से
खुले मैदानो में।
बाबा बताते हैं
वो भी ऐसे ही खेला करते थे,
पर आज मेरा बाबू (बच्चा)
खेलता है
विद्युत उपकरणों से
घर के अंदर
कम्प्यूटर और मोबाइलों से।
कल इनके बाबू
किससे खेलेंगे
उपकरणों से, खिलौनों से
पत्तों, डालों से
या?
शायद अतीत की कहानी
उन्हें तब याद आयेगी
जब समय की नाव
सागर पार कर जायेगी।
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