कल सुबह
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अमरजीत सिंह टांडा5 Mar 2016
कल सुबह
नहीं मिलेंगी ये सभी झाँकियाँ
तीन रंग छोड़ते हुए जहाज़
रिहर्सल और प्रदर्शन
में थक टूट कर
सो जाएँगे
यह सभी जवान और बच्चे
तिरंगा लहराएगा अकेला
देशभक्ति गहरी
निंदिया में डूब जाएगी
शैल्फ पे पड़ा रहेगा सन्देश
ओढ़ कर तिरंगा -
तारीख़ का एक और पन्ना
सुनहरी होगा - टीवी पर
मज़दूर पूछेगा
कल क्या शोर था महानगरों में
मुझे काम नहीं मिला
हम भूखे सोये
कहते आज छुट्टी है -
आज "गणतंतर" है -
घर जाओ - और मनाओ -
मालिक हमरा दिवस तो
रोटी से मनता है-
छुट्टी न लिखी हमरी
तक़दीर में -
हमरी तक़दीर में -
तो रोटी लिख दो मालिक
हमने क्या लेना तंतर में से -
तंतर पेट नहीं भरते
भूखे सोते नहीं सपने
कभी रंगों से भी बुझी है प्यास – मालिक?
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