कर्ज़
काव्य साहित्य | कविता श्रीमती प्रवीण शर्मा6 Feb 2015
कहते हैं
तेरे देश में,
काले गुलाब
खिलते हैं
सींचते हैं
उन्हें
लाल रंग के
पानी से.....
विश्वास के
बादल का
नामोंनिशां भी
नहीं
तेरे आसमां में...
बरसते रहते हॆ
रात दिन
आग के
धधकते गोले,
गरजती घटाएँ हैं
बरबादियों की।
तभी तो
कभी सूरज
नहीं देख पाते
तेरे शहर के
बच्चे....
नहीं जानते हैं
हँसते खिलते
बाग बगीचों की
दुनिया,
प्यार की
खुशबू में
सराबोर
बस्तियां
हो गई
गुज़रे ज़माने की
बात-
और तुम
कहते हो
यही है
जीवन का
सच-
मरो और मारो-
क्या इस
दुनिया में
आँखें खुली थीं
तो तुम्हें
माँ की गोद
नहीं मिली थी-
तुम्हें भी
किसी ने
हँसाया होगा
जब तुम
रो रहे थे..
उन लम्हों
का
कर्ज़
उतारने
के लिए-
आना होगा
हमें, तुम्हें
इसी बिलखती
ज़मीं पर
बार बार
नादान इंसान
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