कीड़े
काव्य साहित्य | कविता नरेश अग्रवाल1 Jun 2016
जब कीड़े घुस जाएँ फल में
क्षीण हो जाता है उसका मूल्य
और जो मूल्यहीन है
फेंक दिया जाता है बाज़ार में।
हमने देर लगा दी
नष्ट होते हुए को देखने में
नाव में कब सुराख़ हुआ
मालूम ही नहीं पड़ा।
अपनी चलनी को बचाकर रखना है
तभी घुलेगी आटे की मिठास जीभ पर
ज़ख़्म हुए तो पाँव में वेदना की चुभन
और निहायत ज़रूरी है
लोहे के बक्से तक को मज़बूत रखना
मधुमक्खी अपने डंक लेकर-
हमेशा सावधान है
सावधान है वह भीड़
जो बार-बार तालियाँ बजा रही
लेकिन उतने सावधान नहीं
इसे सुनने वाले लोग
कीड़े अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ेंगे।
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