ख़्वाबो मेरे ख़्वाबो
काव्य साहित्य | कविता विभा नरसिम्हन16 Oct 2016
ख़्वाबों मेरे ख़्वाबों
कभी तो आराम करो
कितना और उड़ोगे
कहीं तो अब शाम करो
थक कर बैठी हूँ मैं
पीछे तुम्हारे भागते-भागते
आँख मिचौली के इस
खेल में तुम हाथ कभी न आते
इतनी ऊँची पींगे तुम्हारी
कभी तो ढलान करो
ख़्वाबो मेरे ख़्वाबों
कभी तो आराम करो
आँखों में तुम जब सजते हो
रोशन हो जाता है जग मेरा
पर पल में ग़ायब होने की
ज़िद में टूट ही जाता है मन मेरा
अपने सतरंगी मौसम से
जीवन मेरा गुलफ़ाम करो
ख़्वाबो मेरे ख़्वाबों
कभी तो आराम करो
कितना और उड़ोगे
कहीं तो अब शाम करो
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}