लकीरें
काव्य साहित्य | कविता नीलेश मालवीय ’नीलकंठ’1 Dec 2020 (अंक: 170, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
लकीरें कुछ कहती हैं
अगर पढ़ सको तो पढ़ो
क़िस्मत में लिखा होता है
उस पाने लड़ सको तो लड़ो
टेढ़ी मेढ़ी चलती हैं वो
कोई सीधा रास्ता नहीं
मंज़िल का नाम बताती
पर सफ़र से वास्ता नहीं
हथेली में उनका जाल बुना है
सबने अपना काम चुना है
कोई भविष्य की नौकरी बताए
किसी को बच्चों की चिंता सताए
कोई उम्र का गान सुनाए
कोई अपने कर्म गिनाए
अगर पढ़ सको तो पढ़ लेना
यह सब राज़ हमारे बताएगी
वर्तमान में रहकर वह तो
भविष्य से परिचय कराएगी
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