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लांच से ज़्यादा लंच में रुचि

इसरो ने अंतरिक्ष में 104 उपग्रह एक साथ छोड़कर उन्हें सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में स्थापित कर दिया है, ये पूरे देश के लिए तो गर्व की बात है ही लेकिन मेरे लिए यह गर्व के साथ-साथ प्रेरणास्पद बात भी है क्योंकि बचपन में अपने मम्मी-पापा के कई असफल प्रयासों के बाद भी मैं अपनी स्कूल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित नहीं हो पाया था क्योंकि "लांच" होने से ज़्यादा मेरी रुचि "लंच" करने में रहती थी।

इसरो द्वारा लांच करने के बाद उपग्रह तो सफलतापूर्वक अपना कार्य करते रहते हैं लेकिन मैंने स्कूल में लांच होने के बाद भूल कर भी कभी सफल होने के संकेत नहीं दिए थे। अपनी नाकामी पर पहले मुझे बहुत दुःख होता था लेकिन अब सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी द्वारा अपने "युवा नेता" को बार-बार लांच करने के असफल प्रयास देखने के बाद मेरा दुःख ठीक उसी तरह दूर हो गया है जिस तरह उस पार्टी के लिए अभी दिल्ली दूर है। असफलता के काँटे भरे रास्ते पर हमसफ़र का मिलना आज के दौर में इंसान को सबसे ज़्यादा संतोष और सुकून देता है।

"अमीर खुसरो" से लेकर "इसरो" तक हमारे देश ने बहुत लंबा सफ़र तय कर लिया है। जिस गति से इसरो अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ रहा है बहुत संभव है कि अंतरिक्ष में भारतीय उपग्रहों की संख्या रिलायंस द्वारा बेचे "जिओ सिम" से भी अधिक हो जाये और आने वाले समय में हरेक भारतीय पर नज़र रखने के लिए एक उपग्रह उपलब्ध हो क्योंकि हमारी पुलिस हर भारतीय पर नज़र रखने में सक्षम नहीं है।

सरकारी संस्थान होते हुए भी इसरो सफलता के झंडे गाड़ रहा है लेकिन इससे बाक़ी सरकारी विभागों को इससे दिल छोटा करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि बाक़ी सरकारी विभागों के कर्मचारी भी बिल्कुल उपग्रह की तरह काम करते है, वो रोज़ लंच करने में इतना समय लगा देते हैं जितना समय पृथ्वी, सूर्य का चक्कर लगाने में लगाती है।

दुर्भाग्य से इसरो केवल "उपग्रह" ही छोड़ता है, अगर उपग्रह के साथ-साथ इसरो "पूर्वाग्रह" भी छोड़ने लग जाये तो पृथ्वी फिर से रहने लायक़ हो जायेगी और वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर जीवन ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वो चाहे तो अपना क़ीमती समय नेताओं की ईमानदारी ढूँढ़ने में लगा सकते हैं।

इसरो द्वारा इतने सारे उपग्रह एक साथ सफलतापूर्वक छोड़ने के पीछे वैज्ञानिकों की मेहनत तो है ही, साथ-साथ इसरो का भारतीय होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। क्योंकि हम भारतीयो को लंबी-लंबी छोड़ने में महारथ हासिल है। आज का काम हम सफलतापूर्वक कल पर छोड़ देते हैं, खाना खाने के बाद जल्दी ही गैस छोड़ देते हैं, अदालतें अपराधियों को छोड़ देती हैं और तो और उम्मीद का दामन भी हम बहुत जल्दी छोड़ देते हैं। इसी छोड़ने की आदत को देखते हुए पाकिस्तान भी पिछले 70 साल से यहीं आस लगाये बैठा है कि हम कश्मीर पर अपना दावा छोड़ देंगे। लेकिन हम भी ज़िम्मेदार पडोसी हैं, हम जानते हैं कि अगर हमने कश्मीर छोड़ दिया तो फिर पाकिस्तान हमसे जंग किस मुद्दे पर करेगा?

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