अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अथ श्री आलोचक कथा

वे आलोचक हैं, अभी से नहीं, तभी से, मतलब जब से उनके धरती पर अवतरित होने की दुर्घटना हुई थी तब से। यहाँ तक की उन्होंने अपने अवतरित होने की भी आलोचना कर दी थी। वो आलोचना खाते, पीते, ओढ़ते और बिछाते हैं। उनकी रग- रग में आलोचना समायी हुई है। वो कर्मयोगी भी हैं, केवल कर्म करते हैं, उन्होंने आलोचना को ही कर्म बना लिया है। जिस दिन इनकी आलोचना को कोई शिकार नहीं मिलता वे स्वभक्षण करने लगते हैं। आलोचना के लिए वे गुण-दोष, समय या वार-तिथि कुछ नहीं देखते उनकी नज़र हमेशा अपनी आलोचना के "टर्नओवर" पर रहती है और वो हर बार पिछली बार से ज़्यादा उत्पादन करने का प्रयास करते हैं।

वो अपने जीवन साथी के बग़ैर रह सकते हैं लेकिन आलोचना के बग़ैर नहीं रह सकते हैं। आलोचना के साथ उनका लिव-इन रिलेशन है, आलोचना को उन्होंने अपनी पत्नी की अघोषित सौतन बना लिया है। आलोचना उनके लिए प्राण-वायु है। वे प्रकृति से भी एक तरफ़ा प्रेम करते हैं इसलिए ऑक्सीजन लेकर हानिकारक कार्बन-डाई ऑक्साइड नहीं छोड़ते, वो समाज और देश हित में हिट होने के लिए केवल और केवल आलोचना लेकर आलोचना ही छोड़ते हैं और कभी-कभी जब वृहद समाज कल्याण के लिए प्राणायाम करने की आवश्यकता आन पड़ती है तो आलोचना को बाहर या अंदर रोककर केवल बड़ी-बड़ी छोड़ते हैं।

आलोचना के बारे में वो बिलकुल नियमित हैं, कभी कोई रिस्क नहीं लेते, ना ही कोई कोताही बरतते हैं। आलोचना को उन्होंने अपने नित्य कर्म में सम्मिलित कर रखा है और आलोचना भी डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की तरह फॉलो करते हैं। सुबह धोने से पहले दो बार, दोपहर को खाने के बाद एक बार और रात को सोने के बाद तीन बार आउटरेज के साथ वे आलोचना करना नहीं भूलते हैं।

कला, साहित्य, खेल, राजनीति या फिर बॉलीवुड, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा होगा जिसको इन्होंने अपनी आलोचना से ना डसा हो। इनके द्वारा आलोचित व्यक्ति पानी भी नहीं माँगता है क्योंकि आलोचित ख़ुद पानी-पानी हो जाता है। इनकी आलोचना का नेटवर्क दूर-दूर तक फैला हुआ है, कोई भी इनकी रेंज में एक बार आ जाए तो फिर झोली भर के आलोचना पा लेता है। आलोचना के मामले में वो केवल आउटगोइंग में विश्वास रखते है, इनकमिंग मतलब स्वआलोचना के मामले में उन्हें परनिर्भरता पसंद नहीं है। इस मामले में वो बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीख गए थे।

हर सफल इंसान छोटी शुरुवात से ही ऊँची छलाँग भरता है, इन्होंने भी आलोचना का लघु उद्योग लगाकर अपने पैशन को प्रोफ़ेशन का रूप दिया था। आलोचना के धनी और गुणी होने के बावजूद भी उन्होंने आलोचना का "आईपीओ" निकाल आमजन को इसमें भागीदार बनाया ताकि जनता भी इस आलोचना रूपी महायज्ञ में अपनी आहुतियाँ दे सके।

देश में चाहे सूखा पड़ा हो या बाढ़ आई हो लेकिन ये हमेशा अपनी आलोचना रूपी फ़सल का बंपर उत्पादन करते हैं। क्वालिटी शब्द को उनके शब्दकोश से दीमक चट कर गए हैं इसलिए वो हमेशा क्वांटिटी को अपना हथियार बनाते हैं। इनकी आलोचना की ख्याति देश-विदेश में पहुँच चुकी है, देश-विदेश से लोग अपॉइंटमेंट लेकर इनसे आलोचना करवाने आकर अपने को धन्य मानते हैं और जो श्रद्धालु नहीं आ पाते वो स्काइप, फेसबुक, ट्विटर या वाट्सएप से आलोचना करवा कर संतुष्ट हो जाते हैं। आलोचना करने के लिए इन्होंने आदमी भी रख रखे हैं, समयाभाव के कारण छोटी-मोटी आलोचना वो उन्हीं से करवाते हैं।

आलोचना के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों और योगदान को देखते हुए लगता है कि वो जल्दी ही आलोचना के नोबल पर हाथ साफ़ कर लेंगे जिसकी आलोचना बाद में वो स्वयं करेंगे।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं