माँ की याद
काव्य साहित्य | कविता प्रेम विजय कुमार चरण15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
वो क्यों अब भी, मेरे सपनों में आती हैं,
जो दिन बीत गए उनकी, क्यों याद दिलाती हैं?
क्यों लगता है जैसे, उनकी गोद में लेटा हूँ,
मेरे बालों को वो अब भी, सहलाती रहती हैं,
माँ, तू अब भी मुझसे, इतना लाड़ करती है,
कभी लगता नहीं तू दूर, उन तारों में रहती है।
तू कहती थी, बादल के पीछे मत भागो,
जो बाधित करे दृष्टि, उससे दूर रहना है,
खुले आसमां में तुम, रवि के दर्श कर जागो,
अपने अंतर के तम को, कैसे दूर करना है?
कैसे जग में तुमको, यह जीवन जीना है,
सच कहता हूँ मेरी माँ, जग तुम बिन सूना है।
तेरी ममता की झोली से, कृपा-वृष्टि होती है,
दृष्टि शांत तेरी, सदा समभाव की होती है,
तू सिखलाती थी सबको, प्रेम का मतलब,
अहोभाग्य थे मेरे, जो तू मेरी जननी होती है,
तेरे स्नेह से क्यों मैं, अब भी भींग जाता हूँ,
पता है मुझको मेरी माँ, तू अब तारों में रहती है।
पिता के संग मैं देखूँ, पिता के पार्श्व में बैठी,
तेरे आँचल में बैठा मैं, सराबोर होता हूँ,
तीनों जग का हर प्यार, सीने में समेटी,
मैं तेरे पास में बैठा, आँखें मूँद लेता हूँ,
तेरी यादें क्यों फिर माँ, आँखें भिगोती हैं,
उन तारों से क्यों, मेरे सपनों में आतीं हैं?
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