मधुर मिलन
काव्य साहित्य | कविता नवल पाल प्रभाकर30 Jan 2016
दूर-सूदूर क्षितिज पर
मिल रहे गले में बाहें डाल
मतवाली धरती, और बादल लाल।
धरती सजी-सँवरी हुई।
प्रेम से ओत-प्रोत हुई।
हरे रंग की चुनरी ओढ़े
चल पड़ी सभी गहने डाल
दूर-सुदूर क्षितिज पर
मिल रहे गले में बाहें डाल
मतवाली धरती, और बादल लाल।
गोधूली का मिलन ये प्यारा
इस जगती में सबसे न्यारा
गऊएँ चरकर लौटी चारा
तरुवर खडे़ हैं निढाल
दूर-सूदूर क्षितिज पर
मिल रहे गले में बाहें डाल
मतवाली धरती, और बादल लाल।
ऐसा मिलन सदा रहे
तन ओर हृदय में समाया
ऐसे ही रखना तुम अपनी
छत्रछाया और रक्षा ढाल।
दूर-सूदूर क्षितिज पर
मिल रहे गले में बाहें डाल
मतवाली धरती, और बादल लाल।
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