मगर थोड़ा ध्यान से...
काव्य साहित्य | कविता आरती पाण्डेय1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
अपने मन की ऊँचाइयों से भी,
ऊँची उड़ान भरो तुम।
अपने हौसलों की बुलंदियों,
से हो कर रूबरू।
अपनी चाहतों की हद से,
भी आगे गुज़रो तुम।
मगर थोड़ा ध्यान से...
किसी के मन से छेड़ा हुआ,
वो एक साज़ हो तुम।
किसी की बरसों की तपस्या,
का क़ीमती अल्फ़ाज़ हो तुम।
किसी की हसरतों में...
तुम ख़ुद को बसाना ज़रूर,
मगर थोड़ा ध्यान से...
यह मुस्कान किसी की आँखों
से छलका हुआ वो नूर है।
जिसकी दुनिया का तू एक
इकलौता ही ग़ुरूर है।
तुम भी किसी की आँखों में...
बस जाना इत्मिनान से,
मगर थोड़ा ध्यान से...
ज़िंदगी के इस सफ़र,
की सुनहरी शाम में।
जब थक जाएँ क़दम,
किसी के इंतज़ार में।
तुम भी हमसफ़र बन जाना...
किसी हमराज़ के,
मगर थोड़ा ध्यान से...
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