मैंने सहेजा है तुम्हें
काव्य साहित्य | कविता गौरव भारती20 Jun 2017
मैंने सहेजा है तुम्हें
ज्यों पत्तियाँ सहेजती हैं धूप
माटी सहेजती है बारिश
फूल सहेजता है ख़ुशबू
चाँद सहेजता है चाँदनी
ज्यों माँ सहेजती है
बच्चों के लिबास संग लिपटी यादें
मैंने सहेजा है तुम्हें
जैसे बचपन की बदमाशियाँ
नानी की कहानियाँ
माँ के दुलार
पापा की फटकार
दादी की गठरी से निकले सिक्के
क्रिकेट खेलते तुक्के से लग गए छक्के
छत पर दिनभर की पतंगबाज़ी
कंचा और निशानेबाज़ी
मैंने सहेजा है तुम्हें
बिन बताए बस तुम्हें ताक कर
सोहबत में वक़्त थोड़ा गुज़ारकर
सहेजा है तुम्हें तुम्हारी स्मृतियाँ
बुन बुनकर ज्यों बुनती है स्वेटर
मैंने सहेजा है तुम्हें
कुछ यूँ कि दीवारें तुम्हें जानती हैं
मेरी कविता तुम्हें पहचानती है
मानो मेरी कहानी की नायिका हो तुम
प्रेम का अद्भुत एहसास हो तुम
मैंने सहेजा है तुम्हें
ज्यों तिनका तिनका चिरैया बनाती है घोंसला
ज्यों कुम्हार गढ़ता है बर्तन
मधुमक्खियाँ जुटाती है शहद
अथक अथक अथक!
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