मेरी दुनिया
काव्य साहित्य | कविता अनिल खन्ना1 Mar 2019
आओ मेरी खिड़की पे बैठो
यहाँ से मुझे
मेरी दुनिया नज़र आती है।
माँ रोज़ सुबह मेरा बिस्तर
खिड़की से सटा देती है
और शाम ढलने पर
हटा देती है।
खिड़की से पीले रंग में लिपटे,
बीमार से
सरकारी घर दिखते हैं।
छतों पर रस्सियों पे टँगे,
कठपुतलियाँ बने,
रंग बिरंगे कपड़े
हवा में झूलते हैं !
बिजली की तारों पर टँगी
कटी पतंगे सर हिला-हिलाकर
बुलातीं हैं मुझे।
आँगन के पेड़ पर
अठखेलियाँ करती
गिलहरियाँ हँसाती हैं मुझे।
आसमान में बादल
अजीबोग़रीब शक्लें बनाते हैं।
शेर, हाथी, बंदर और खरगोश
सभी नज़र आते हैं।
बारिश में नहाते बच्चों को देख
आँख भर आती है।
मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू
मेरे अंदर तक समा जाती है।
“तुम जल्दी ठीक हो जाओगे”
रात को सोने से पहले माँ
कान में फुसफुसाती है!
भगवान् मुझे ही
सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं,
ऐसा बताती है।
मैं चुपचाप मान लेता हूँ,
कल मेरी दुनिया में क्या होगा
उसकी कल्पना करते-करते
आँख मूँद कर सो जाता हूँ।
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